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हम हैं जनवरी 2010 में ‘मन कही’ के रूप में शुरू उत्तराखंड का सबसे पुराना समाचार पोर्टल.. हम बताते हैं प्रकृति के स्वर्ग नैनीताल की खिड़की से उत्तराखंड व देश-दुनिया के हाल-चाल…
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एशिया का पहला जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और ब्याघ्र अभयारण्य
एशिया का पहला जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और ब्याघ्र अभयारण्य
जिम कॉर्बेट पार्क में हाथियों का झुण्डदेश में राष्ट्रीय पशु-बाघों की ताजा गणना के अनुसार बाघों को बचाने के मामले में देश में नंबर-एक घोषित तथा भारत ही नहीं एशिया के पहले राष्ट्रीय पार्क-जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और ब्याघ्र अभयारण्य को 1973 से देश का ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत पहला राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य होने का गौरव भी प्राप्त है। उत्तराखंड राज्य की तलहटी में समुद्र सतह से 400 (रामनगर) से 1100 मीटर (कांडा) तक की ऊंचाई तक, पातली दून, कोसी व रामगंगा नदियों की घाटियों और राज्य के दोनों मंडलों कुमाऊं और गढ़वाल के नैनीताल व पौड़ी जिलों में 1288 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दुनिया के इस चर्चित राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी समृद्ध जैव विविधता का वैभव बिखेरा है। हरे-भरे वनों से आच्छादित पहाडियां, कल-कल बहते नदी नाले, चौकड़ी भरते हिरनों के झुंड, संगीत की तान छेडते पंछी, नदी तट पर किलोल भरते मगर, चिंघाड़ते हुए हाथियों के समूह और सबसे रोमांचक रॉयल बंगाल टाइगर की दहाड की गूंज जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की सैर को अविस्मरणीय बना देते हैं। पार्क के निर्माण का इतिहासप्रकृति की अपार वन व जैव-सम्पदा को स्वयं में समेटे जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की स्थापना आठ अगस्त 1936 में ‘हेली नेशनल पार्क’ के नाम से हुई थी। ब्रिटिश शासन से पूर्व यह क्षेत्र टिहरी गढ़वाल के शासकों की निजी सम्पत्ति हुआ करता था। बेहद दमनकारी गोरखा शासकों के कुमाऊं में आधिपत्य जमाने के दौर में गढ़वाल शासकों ने इसे गोरखाओं के कब्जे में जाने से बचाने के लिए वर्ष 1820 के आसपास राज्य के इस हिस्से को ब्रिटिश शासकों को सौंप दिया था। अंग्रेजों ने पहले रेलगाड़ियों की सीटों के लिए यहां खड़े टीक के पेड़ों को भारी मात्रा में दोहन किया। पहली बार वर्ष 1858 में बाद में कुमाऊं कमिश्नर रहे मेजर हैनरी रैमजे ने यहां के वनों को सुरक्षित रखने के लिये व्यवस्थित कदम उठाये। इसी क्रम में वर्ष 1861-62 में ढिकाला और ‘बोक्साड के चौडों’ (घास के मैदानों) में खेती, मवेशियों को चराने और लकडी कटान पर रोक लगा दी गई। वर्ष 1868 में इन वनों की देखभाल का जिम्मा वन विभाग को सौंपा गया और 1879 में वन विभाग ने इसे अपने अधिकार में लेकर संरक्षित क्षेत्र घोषित किया। वर्ष 1907 में सर माइकल कीन ने इन वनों को वन्य प्राणी अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव रखा, किंतु सर जौन हिवेट ने इसे अस्वीकृत कर दिया। इसके पश्चात वर्ष 1934 में तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के गवर्नर सर मैल्कम हेली ने इसे अभयारण्य बनाने की योजना बनाई और इसी दौरान लंदन में संपन्न संगोष्ठी में संयुक्त प्रान्त के पर्यवेक्षक स्टुवर्ड के प्रयासों से राष्ट्रीय उद्यान का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। 1935 में सरकार ने वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत देशभर में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के नेटवर्क में वन्य जीवों के आवास का संरक्षण किया और इस तरह वर्ष 1936 में राष्ट्रीय पार्क की स्थापना हुई और इसे हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद पहले इसका नाम ‘रामगंगा नेशनल पार्क’ और 1957 में इसे जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान में इसके सीमांकन और इसे स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और क्षेत्रीय लोगों को आदमखोर बाघों को मारकर भयमुक्त करने वाले मशहूर अंग्रेज शिकारी व पर्यावरण प्रेमी जिम कार्बेट के निधन के पश्चात श्रद्धांजलि स्वरूप इस पार्क को ‘जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान’ नाम दे दिया गया। है। 1973 में देश में वैज्ञानिक, आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय मूल्यों की दृष्टि से वन्य जीवों की व्यवहारिक संख्या बनाए रखने तथा लोगों के लाभ, शिक्षा और मनोरंजन के लिए राष्ट्रीय विरासत के रूप में जैविक महत्व के ऐसे क्षेत्रों को सदैव के लिए सुरक्षित बनाए रखने के उद्देश्य से बाघ परियोजनाओं की शुरूआत के समय देश के 14 राज्यों में पहले 23 और बाद में दो और मिलाकर कुल 25 आरक्षित वन क्षेत्र-काजीरंगा, दुधवा, रणथंभौर, भरतपुर, सरिस्का, बांदीपुर, कान्हा, सुन्दरवन आदि अभयारण्यों की स्थापना की गई। 1993 में जिम कार्बेट पार्क को भी इस योजना के तहत शामिल किया गया। पार्क का क्षेत्रफलप्रारंभ में जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व 323.50 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ था। आगे वन्य जन्तुओं की आवश्यकताओं के मद्देनजर वर्ष 1916 में इसमें 197.07 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र और मिलाया गया। इस तरह इसका क्षेत्रफल बढकर 520.82 वर्ग किलोमीटर हो गया। पहली अप्रैल 1973 को ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ नामक महत्वाकांक्षी परियोजना का श्रीगणेश इसी पार्क से किया गया। फलस्वरूप 1991 में एक बार फिर इसके विस्तार करने की जरूरत पड़ी, और इसमें सोना नदी वन्य जन्तु विहार और कालागढ आरक्षित वन क्षेत्र को मिलाकर इसका क्षेत्रफल बढ़ाकर 1288 वर्ग किमी हो गया। इसके अंतर्गत 521 वर्ग किमी क्षेत्रफल में जिम कॉर्बेट व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है। कब जायेंःजिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की सैर के लिए 15 नवंबर से 15 जून के बीच का समय सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। नवम्बर से फरवरी के मध्य यहां तापमान 25 से 30 डिग्री, मार्च-अप्रैल में 35 से 40 तथा मई-जून में 44 डिग्री तक पहुंच जाता है। कैसे जायेंः जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व देश के सभी प्रमुख शहरों से सडक व रेल मार्ग से जुडा हुआ है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से गाजियाबाद, हापुड होकर मुरादाबाद पहुंचने के बाद यहां से स्टेट हाइवे 41 को पकडकर काशीपुर, रामनगर होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। लखनऊ से भी राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से सीतापुर, शाहजहांपुर, बरेली होते हुए मुरादाबाद और वहां से उपरोक्त मार्ग से कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर व हल्द्वानी है जो दिल्ली, लखनऊ और मुरादाबाद से जुड़े हुए हैं। वायु मार्ग से यहां पहुंचने के लिये 115 किमी दूर पन्तनगर निकटतम हवाई अड्डा है। यह दिल्ली से 290 किमी, लखनऊ से 503 किमी व देहरादून से 203 किमी दूर है। रामनगर में पार्क प्रशसन का मुख्य कार्यालय है, जहां से परमिट लेकर छोटी गाड़ियों, टैक्सियों और बसों से पार्क के 12 किमी की दूरी पर स्थित पार्क के मुख्य गेट एवं 47 किमी दूर ढिकाला तक पहुंचा जा सकता है। उद्यान के अन्दर ही लकड़ी के मचान युक्त लॉज, कैंटीन व लाइब्रेरी भी उपलब्ध हैं। जहां बैठकर वन्य जीवों के दर्शन के साथ ही उनका अध्ययन भी किया जा सकता है। कहां ठहरेंः लीला विलास रिजोर्ट ढिकुली रामनगर जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के आवास के लिये कुमाऊं मंडल विकास निगम के वन विश्राम गृह, ब्रिटिशकालीन वन विश्राम गृहों से लेकर आधुनिक पर्यटक आवास गृह और स्विस कॉटेज टैंट आदि की समुचित व्यवस्था है। सुविधाओं की दृष्टि से ढिकाला पर्यटकों के ठहरने की पसंदीदा स्थान है। इसके अतिरिक्त लोहा चौड़, गैरल, सर्पदुली, खिनानौली, कंडा, यमुनाग्वाड़, झिरना, बिजरानी, हल्दू पड़ाव, मुड़िया पानी और रघुवाढाव सहित 23 वन विश्राम भवन भी हैं, जिनके लिए ऑनलाइन माध्यम से अग्रिम आरक्षण की सुविधा भी उपलब्ध है। ढिकुली स्थित लीला विलास, व नमह और पाटकोट स्थित बाघ द रिजोर्ट जैसे रिजोर्ट में भी बेहतरीन सुविधा उपलब्ध है। कार्बेट टूरिज्म जैसी संस्थाओं से सफारी की सुविधा प्राप्त की जा सकती है। क्या देखेंः जंगली जीवः जिम कार्बेट पार्क का मुख्य आकर्षण यहां देश की सर्वाधिक संख्या में मिलने वाले राष्ट्रीय पशु बाघ-रॉयल बंगाल टाइगर हैं। साथ ही यहां रामगंगा के इर्द-गिर्ग फैले घास के पठारों से ‘चौडों’ यानी मैदानों और ‘मंझाड़े’ (जल के मध्य स्थित जंगल), में सैंकडों की तादाद में हिरनों खासकर स्पॉटेड डियर यानी चीतलों के झुंड सहजता से नजर आ जाते हैं। भारतीय हाथी, गुलदार, जंगली बिल्ली, फिशिंग कैट्स, हिमालयन कैट्स, हिमालयन काला भालू, सुअर, तेंदुवे, गुलदार, सियार, जंगली बोर, पैंगोलिन, भेड़िए, मार्टेंस, ढोल, सिवेट, नेवला, ऊदबिलाव, खरगोश, चीतल, सांभर, हिरन, लंगूर, नीलगाय, स्लोथ बीयर, सांभर, काकड़, चिंकारा, पाड़ा, होग हिरन, गुंटजाक (बार्किग डियर) सहित कई प्रकार के हिरण, तेंदुआ बिल्ली, जंगली बिल्ली, मछली मार बिल्ली, भालू, बंदर, जंगली, कुत्ते, गीदड़, पहाड़ी बकरे (घोड़ाल) तथा हजारों की संख्या में लंगूर और बंदरों के अलावा रामगंगा नदी के गहरे कुंडों में शर्मीले स्वभाव के घड़ियाल और तटों पर मगरमच्छ, ऊदबिलाव और कछुए सहित 50 से ज्यादा स्तनधारी पाए जाते हें। रामगंगा व उसकी सहायक नदियों में स्पोर्टिंग फिश कही जाने वाली महासीर, रोहू, ट्राउट, काली मच्छी, काला वासु और चिलवा प्रजाति की मछलियां तथा जंगल में किंग कोबरा, वाइपर, कोबरा, किंग कोबरा, करैत, रूसलस, नागर और विशालकाय अजगर जैसे 25 प्रजाति के सरीसृप व सर्प प्रजातियां भी उपस्थित हैं, जो बताती हैं कि यह क्षेत्र सरीसृपों और स्तनपायी जानवरों की जैव विविधता के दृष्टिकोण से कितना समृद्ध है। पक्षीः जिम कार्बेट पार्क में बगुला, डार्टर, पनकौवा, टिटहरी, पैराडाइज फ्लाई कैचर, मुनिया, वीवर बर्ड्स, फिशिंग ईगल, सर्पेन्ट ईगल, जंगली मुर्गा, मैना, बुलबुल, कोयल, मोर, बार्बेट, किंगफिशर, बत्तख, गीज, सेंडपाइपर, नाइटजार, पेराकीट्स, उल्लू, कुक्कु, कठफोडवा, चील व सुरखाब सहित 585 रंग-बिरंगे पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। वनस्पतियांः जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व तराई-भाबर के मैदानों से लेकर पहाड़ियों और नदियों के बीच बसा हुआ है। ऐसे में यहां निचले क्षेत्रों से लेकर ऊपरी हिस्से के पेड़ पौधों में विविधता पाई जाती है। यहां साल, शीशम, खैर, ढाक, सेमल, बेर, चिर, अनौरी, बकली, खैर, तेंदू और कचनार आदि वृक्षों की जैव विविधना से जंगल भरे पड़े हैं। पार्क के कुछ हिस्सों में बांस की विभिन्न किस्में देखी जा सकती हैं। कैसे देखें : जिम कोर्बेट राष्ट्रीय अभयारण्य का भ्रमण जीपों के द्वारा भी किया जाता है, लेकिन उनके शोर से जानवरों को करीब देखना कठिन होता है, जबकि प्रशिक्षित हाथियों पर सवार होकर सफारी का आनंद लेते हुए जंगल की ऊंची-नीची पगडंडियों, घास की झाड़ियों तथा शाल के पेड़ों के बीच से होकर वन्य जीवों का दर्शन करने की सर्वाधिक संभावना रहती है। जिम कार्बेट संग्रहालय और कार्बेट फॉल रामनगर से हल्द्वानी जाने वाली सड़क पर कालाढूंगी के पास ‘छोटी हल्द्वानी’ नाम के स्थान पर एडवर्ड जिम कार्बेट का शीतकालीन प्रसास का घर अब उनकी स्मृतियों को संग्रहालय के रूप में संजो कर रखे हुए है। इस भवन के अहाते में जिम के प्रिय कुत्ते की भी कब्र है। इसमें जिम कार्बेट के चित्र, उनकी किताबें, उनके द्वारा मारे गए बाघों के साथ उनकी तस्वीरें, उस समय के हथियार, कई तरह की बन्दूकें और वन्य-जीवन से संबंधित कई प्रकार की पठनीय सामग्री भी उपलब्ध है। पास ही नयां गांव के करीब जंगह में एक खूबसूरत झरना भी दर्शनीय है, जिसे ‘कार्बेट फॉल’ का नाम दिया गया है। जिम कार्बेट पार्क के भीतर कंडी रोड के वन मार्ग से अथवा यूपी के अफजलगढ़ (बिजनौर) की ओर से मिट्टी से बने देश ही नहीं एशिया के अनूठे रामगंगा नदी पर बना कालागढ बांध भी देखा जा सकता है। गहन वन क्षेत्र होने की वजह से यहां कदम-कदम पर हिंसक वन्य जीवों के खतरे भी रहते हैं, इसलिए हर पल उनसे सतर्क और संयत रहने की सलाह दी जाती है। सुबह सवेरे की प्रभात बेला तथा सांझ ढलने का समय वन्य जीवों और पक्षियों को देखने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है। 27 Sep 2017नवीन समाचार4 Comments |